warrior
Tuesday, August 31, 2010
रमजान का अंतिम पड़ाव
रमजान का आखिरी पड़ाव जिसमे पूरी दुनिया के मुसलमान भाई अपनी इबादतों को बढ़ा देते हें | हम सभों के लिए ईशदूत (पैगम्बरए खुदा ) मुहम्मद (स) ने हमें बताया हें कि रमजान का ये आखिरी अशरा जहन्नुम(नर्क) सेआज़ादी दिलानेवाला है!
Saturday, August 21, 2010
रमज़ान उल मुबारक
माहे रमजान को नेकियों का मौसमे बहार कहा गया है। जिस तरह मौसमे बहार में हर तरफ सब्जा ही सब्जा नजर आता है। हर तरफ रंग-बिरंगे फूल नजर आते हैं। इसी तरह रमजान में भी नेकियों पर बहार आई होती है। जो शख्स आम दिनों में इबादतों से दूर होता है, वह भी रमजान में इबादतगुजार बन जाता है। यह सब्र का महीना है और सब्र का बदला जन्नात है।
यह महीना समाज के गरीब और जरूरतमंद बंदों के साथ हमदर्दी का महीना है। इस महीने में रोजादार को इफ्तार कराने वाले के गुनाह माफ हो जाते हैं। पैगम्बर मोहम्मद सल्ल. से आपके किसीसहाबी (साथी) ने पूछा- अगर हममें से किसी के पास इतनी गुंजाइश न हो तो एक खजूर या पानी से ही इफ्तार करा दिया जाए।
यह महीना मुस्तहिक लोगों की मदद करने का महीना है। रमजान के तअल्लुक से हमें बेशुमार हदीसें मिलती हैं और हम पढ़ते और सुनते रहते हैं लेकिन क्या हम इस पर अमल भी करते हैं। ईमानदारी के साथ हम अपना जायजा लें कि क्या वाकई हम लोग मोहताजों और नादार लोगों की वैसी ही मदद करते हैं जैसी करनी चाहिए? सिर्फ सदकए फित्र देकर हम यह समझते हैं कि हमने अपना हक अदा कर दिया है।
जब अल्लाह की राह में देने की बात आती है तो हमारी जेबों से सिर्फ चंद रुपए निकलते हैं, लेकिन जब हम अपनी शॉपिंग के लिए बाजार जाते हैं वहाँ हजारों खर्च कर देते हैं। कोई जरूरतमंद अगर हमारे पास आता है तो उस वक्त हमको अपनी कई जरूरतें याद आ जाती हैं। यह लेना है, वह लेना है, घर में इस चीज की कमी है। बस हमारी ख्वाहिशें खत्म होने का नाम ही नहीं लेती हैं।
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